Sunday, April 10, 2011

हाँ कुछ लम्हे बरसों जिन्दा रहते हैं...

Gulzar depicts how poem is born ....

एक mood, एक कैफियत गीत का चेहरा होता है...

कुछ सही से लफ्ज़ जड़ दो, मौजूँ से धुन की लकीरें खींच दो,
तो नगमा साँस लेने लगता है, जिन्दा हो जाता है...

इतनी सी जान होती है गाने की, एक लम्हे की जितनी,
हाँ कुछ लम्हे बरसों जिन्दा रहते हैं...

गीत बूढ़े नहीं होते उनके चेहरे पे झुर्रियां नहीं गिरती,
वो पलते रहते हैं चलते रहते हैं...
सुनने वाले बूढ़े हो जाते है तो कहेते है -
“हाँ … वोह उस पहाड़ का टीला जब बादल से ढक जाता है, तो एक आवाज सुनाई देती है”

….. by Gulzar

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